कवि होश में रहें / MUSAFIR BAITHA
आसमां को झुकाने में यकीं नहीं रखो कवि
याद रखो कवि
एक तो तुम्हारे सिर के ऊपर से ही
आसमां शुरू होता है इसलिए उसके झुकने झुकाने की बात ही बेमानी है
दूसरे कोई अंकुश लगी लग्गी नहीं है तेरे पास
और न ही आसमां में किसी अंकुश को थामने के प्वाइंट्स
जो उसे झुकाने के काम आ सके
तू धरा को ही आसमां के ऊपर
बिठा आने की जुगत में रह
ऐ ख्वाबी अतीच्छा पालक कवि!
कि अपनी प्रगतिशील उड़ान में
कवि आसमां को झुकाने को न बहक
न ना-हक शील त्याग
कि न छोड़ो कवि रचने का विवेक और शील
बल्कि हक़ और कुव्वत पाओ तुम
धरा को आसमां के ऊपर पहुंचा आने की
अपने यथोचित श्रम और सामर्थ्य के बूते!
रहो होश में कवि
और रहें होश में सभी कवि तुझ जैसे
कि जोश को अपने ताड़ पर चढ़ा आने के अपने खतरे हैं
कि खजूर पर अटकने के मौके भी
न मिले कहीं गिरने से ऐसे में
कवि इतना न निवेश करो रचना में अपनी
बिम्ब, प्रतीक और अलंकार थोथे
कि रचना में कल्पना की ऊंची उड़ान तेरी
बच्चों के कागज का जहाज उड़ाने तैराने जितना ही खुशफ़हम सिरज सके!