कवि दर्द से जब भी पूरी तरह भर जाता है,
कवि दर्द से जब भी पूरी तरह भर जाता है,
ग़ज़ल लिखकर एक बार फिर मर जाता है,
शब्दों में उतने ही ज्यादा जज्बात निकलते हैं,
मन के वो अपने जितने ही भीतर जाता है।
कवि चाह कर भी हर बात नहीं कह पाता है,
प्रेम में विरह की वो हर तड़पन सह जाता है।
सब्र उसका देख गजल खुद विलाप करती है,
आधी रचना में वो घुटने के बल गिर जाता है।