कवि की लेखनी
कवि की लेखनी उसके ह्रदय का स्वर होती है,
यह कभी परिस्थितिजन्य वेदना के शब्द कहती है ,
तो कभी प्रफुल्लित गीत पिरोती है ,
कभी यह प्रेमी की भावना में डूबे प्रेम-गीत सुनाती है,
कभी हृदय से हृदय के स्पंदन की अनुभूति
काव्य बन प्रस्तुत होती है ,
कभी सुंदरता का वर्णन बनती ,
तो कभी प्रेम कामना होती है ,
कभी प्रेमियों के मीठे सपने बुनती है ,
तो कभी दुःखी प्रेमी के तम में डूबती है ,
कभी निराशा भरी जीवन गाथा कहती है ,
कभी दुःखी हृदय का आर्तनाद बनती है ,
तो कभी आकांक्षाओं की अपेक्षा बनती है ,
कभी प्रेम प्रतिज्ञा वर्णित करती ,
तो कभी कृतघ्नता विदीर्ण हृदय की
अभिव्यक्ति बन जाती है ,
कभी मद्यप की अचैतन्य अवस्था का कारण ,
तो कभी सुरासुंदरी एवं मधुशाला का संदेश बनती है,
कभी सौंदर्य एवं प्रेम में छल का मंतव्य बताती है ,
तो कभी जीवन यथार्थ के शब्द बन जाती है ,
तो कभी वीरों के शौर्य का वर्णन,
वीर गाथा बन प्रस्तुत होती है ,
हर समय , हर कालखंड , एवं हर परिस्थिति का
वर्णन प्रस्तुत करती है ,
कवि का आत्मसम्मान एवं सत्यनिष्ठा
उसकी लेखनी होती है ।