कवि की कल्पना
जो कवि लिखता है वह भी कल्पना से ही पोषित भाव है
जो हो कर भी नहीं ओर जो नहीं हो कर भी होते भाव है
जो भी आया कल्पना में उसे दे दिया एक साकार भाव है
जो भी चाहा लिख दिया यही कवि का स्वभाव है
कभी देश की समस्याओ को रख दिया लेखनी में
कभी देश की शक्तियो को जागॖत कर दिया भाव से
कभी चीर दिया तिमिर अपनी लेखनी के पॖकाश से
कभी लिख दिया कोई गीत कोयल की मधुर ध्वनि पे
पंछीयो के परो से सिखा दिया परवाजो को
नदियाे की धारो से जोड़ दिया गीतो को
दूर तक फैले क्षितिज को भी उसने
लिख दिया मिलन अम्बर ओर धरा का
सुशील मिश्रा (क्षितिज राज)