कवि और पाठक
अन्वय,अर्थ है आपका ,
लिखना अपना काम ।
श्रवणभक्ति-फल आपका,
अपने केवल राम ।
विश्लेषण है,आपका,
अपनी केवल बात ।
दिन पूरा है,आपका,
अपनी केवल रात ।
दुनियाँ सारी आपकी,
अपना केवल प्यार ।
तलवारें सब आपकीं ,
अपनी केवल धार ।
गोकुल,मथुरा आपकी,
अपना केवल वृन्दावन ।
वर्षा पूरी आपकी ,
अपने केवल श्याम-घन ।
सार,मजा सब आपका,
अपना बस संघर्ष ।
प्यार बढ़े जो आपका,
अपना हो उत्कर्ष ।
यज्ञवेदिका आप हैं,
अपनी केवल समिधाएँ।
प्रखर अग्नि भी आप हैं,
अपनी केवल ज्वालाएँ ।
मान्यताएँ सब आपकीं,
अपना केवल भाव ।
नदिया पूरी आपकी ,
अपनी केवल नाव ।
भोजन पूरा आपका,
अपना केवल जल ।
वर्तमान सब आपका,
अपना केवल कल ।
राँगोली सब आपकी,
अपना केवल आँगना ।
हरिप्रसाद सब आपका,
अपनी बस आराधना ।
फूल,गंध सब आपकी,
अपने केवल खार ।
वीणा पूरी आपकी,
अपने केवल तार ।
न्याय-पथ है,आपका,
अपना केवल कर्म ।
काव्य शांति दे आपको,
यही हमारा धर्म ।
-ईश्वर दयाल गोस्वामी
कवि एवं शिक्षक ।