कवि अमर है
कवि अमर है
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कवि कभी मरा नहीं करते
कवि मरकर भी
जिंदा रहते हैं,
आमजन मानस में
समाज और संसार में।
अपनी कृतियों से हमेशा
जागृति रहते हैं,
अपनी लेखनी अपने विचारों से
हमेशा पास ही नहीं
साथ भी रहते महसूस होते हैं।
हमेशा कुछ नयेपन का
अहसास कराते हैं,
जो मर गया हो
वो ऐसे भाव कहाँ जगाते हैं?
ऐसा सिर्फ़ कवि ही कर पाते हैं
अपने शब्दांकित सृजन से
मरकर अधिक जागृति का
अहसास कराते हैं,
कवि कभी मरा नहीं करते,
वो तो मरकर भी
अमरत्व पा जाते हैं,
सदियों सदियों तक
जिंदा रहते हैं,
मरकर भी जैसे
अमरता का वरदान पा जाते हैं।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा(उ.प्र.)
8115285921
©मौलिक, स्वरचित