कविता _निकल पड़ा अनजान सफर पर
निकल पड़ा अनजान सफर पर,
छोटा सा जीव निराला।
रोना-धोना मचा जहाँ में,
प्रकृति से पड़ा अब पाला।।
होके रह गये बन्द घरों में,
लगे की पड़ गया ताला।
चित्कार उठें घर की दीवारें,
जब बनता कोई निवाला।।
बन गई दुरियाँ जो रिश्तों में,
मिल गया,उनको नया हवाला।
तजे गये माँ बाप को देखो,
फिर से आज सम्भाला।।
भूल गये अब हाथ मिलाना,
गले नहीं कोई लगता।
यही तरीका बस है ठहरा,
जिससे ‘कोरोना’ नहीं डसता।।
बहुत हो गया तांडव इसका,
अब तो उपचार जरुरी है।
बच गया मरीज गर एक भी इसका,
जीने की आस अधुरी है।।
शायर देव मेहरानियां
अलवर, राजस्थान
slmehraniya@gmail.com