कविता _एक नया इतिहास लिखें हम,दुश्मन की बर्बादी का
कविता _एक नया इतिहास लिखें हम,दुश्मन की बर्बादी
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कहने को तो बहुत ही, मासूम सा दिखता हूँ।
खरीदोगे ‘जहाँ ए नफरत’, मोहब्बत में बिकता हूँ।
गुजर गया वक्त ‘इजहार ए इश्क’ ,बेवफाई के जिक्र का, आजकल ‘देव’ दुश्मनों की, मैं बर्बादियाँ लिखता हूँ।
अब बस एक ही जतन करें ,पी ओ के की आजादी का
एक नया इतिहास लिखें हम, दुश्मन की बर्बादी का।।
तीन सौ सत्तर हटा दई,माहौल घाटी का शान्त हुआ,
रास न आया दुश्मन को,मन उसका बहुत क्लान्त हुआ,
जीते जी प्राणान्त हुआ, मोह छूट न पाया हसीं वादी का।
एक नया इतिहास लिखें अब, दुश्मन की बर्बादी का।।
आतंकी अड्डा बना हुआ,मिल रहा है साथ पड़ोसी का,
अब की बार जो करी हिमाकत,सर काट देंगे उस दोषी का,
करें लहू से तिलक आज, नर मुंडों की शहजादी का।
एक नया इतिहास लिखें हम , दुश्मन की बर्बादी का।।
पिछ्ली मार भी भूल गया, फन फिर से नाग तू उठा रहा
अमन चैन तुझे रास न आता ,आतंकी सब बुला रहा
मौत की नींद तू सुला रहा, साथी बनता हर वादी का
एक नया इतिहास लिखें हम, दुश्मन की बर्बादी का।।
भारत माता के दामन, पर अब जो भी दाग लगायेगा,
सौगन्ध हमें माँ काली की, कभी नहीं बच पायेगा,
बना उसे फिर हम मेहमां दें,मरघट की आबादी का।
एक नया इतिहास लिखें हम, दुश्मन की बर्बादी का।।
बहुत सह लिये जुल्मों सितम,अब तो प्रतिकार करो
ओ! महलों के सिंहासन जादो, खुला अब यलगार करो
थर्राएं दुश्मन देख जिगर, कैसे बना ये ‘देव’ फौलादी का
एक नया इतिहास लिखें हम, दुश्मन की बर्बादी का
अब बस एक ही जतन करें ,पी ओ के की आजादी।
एक नया इतिहास लिखें हम, दुश्मन की बर्बादी का।।