कविता
“मैने पूछा भगवान से”
मैंने पूछा भगवान से एक बात समझ नहीं आती।
मनुष्य जानवरों सा व्यवहार क्यों करने लगा है।
अपनी बहन बेटियों से ही दुराचार क्यों करने लगा है।
भगवन बोले मनुष्य पहले भगवान नाम से डरता था।
कोई भी गलत काम करने से पहले अपनी अन्तरआत्मा से पूछ लिया करता था।
अब बहसी हबसी दरिंदा सा हो गया है ।
इसलिऐ सबसे बड़ा जानवर हो गया है।
पहले एक पेग के नाम से वो सुरा पान करता है।
फिर उसके नशे मैं अपने को सबसे बड़ा समझता है।
फिर बाद मैं सुरा उसका पान करने लगती है।
और संसार के बुरे से बुरे काम कराने लगती है।
मैने पूछा भगवान से मानव कन्या को गर्भ मैं क्यों मार रहा है।
ऐसा घोर अत्याचार क्यों कर रहा है।
भगवन बोले मानव नासमझी में ये काम कर रहा है।
मानव जिस माॅ के गर्भ से जन्म लेता है।
वह नहीं समझ रहा वो भी एक कन्या है।
बेटे के लालच में आज बेटी को मार रहा है।
समझो अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रहा है।
जिस कन्या को मार रहे हो वो कभी तुम्हारी बहू होगी
जब नहीं मिलेगी तब अपनी भूल महसूस होगी।
वक्त रहते सम्भल जाओ बरना अपने आंगन में किलकारियों को तरसोगे।
जब बहू ही नहीं मिलेगी तो कुवारे ही मरोगे।
बेटियां तो घर की संसकृती और नूर होती हैं।
मानो या ना मानो वो तो जन्नत की हूर होती है।
वो एक नहीं दो घरों की वारिस होती हैं।
वो कभी माॅ कभी बहन कभी पत्नी कभी बेटी होती है।
सही मायनों में बेटी ही बारिस होती है।
रचयिता – इन्द्रजीत सिंह लोधी।