कविता
कविता
बदनाम
मुहब्बत की इक बगिया, वीरान हो गया हैं
एक सीधा साधा शायर, बदनाम हो गया हैं ||
लिखता था वह ख़ून से मुहब्बत का हर पन्ना
इश्क़ इश्क़ ना रहा,हिन्दू मुसलमान हो गया हैं ||
किए थे कसमें वादे संग जीने मरने के लिए
मुहब्बत की गलियां अब शुनशान हो गया हैं ||
नफरतों की आंधी ने उसकी कश्तियाँ डूबा दी
अपने ही दिल का खाली मकान हो गया हैं ||
जब तक सांसे हैं उम्मीद ना छोड़ना हैं दोस्त
सुख और दुःख ज़िंदगी का मेहमान हो गया हैं ||
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पुष्पराज देवहरे “भारतवासी ”
रायपुर छत्तीसगढ़