कविता
यह शब्द नहीं,
केवल कविता है I
जो जज्बातों के
ताने-बाने से बनी है
जलते अंगारों के
फूलों से जड़ी है
ना छूना इसे
नकली जानकर
जल जाओगे इससे
छेड़खानी कर
जब कोई ना साथ हो
तभी निकलते इसके उद्गार
ज्यों प्रश्नों के समंदर से
निकलते हो हलाहल
इसने दिया सहारा
हर उस जन का
जो सभी से कुछ बोलना
हो चाहता अपने मन का
यह शब्द नहीं,
केवल कविता है I
– मीरा ठाकुर