कविता
शाम जब उतरती है
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शाम जब उतरती है आँगन में
मन कहीं भागता है पीछे
लौटते पक्षियों को देखकर
आकाश में
मन रिहाई माँगता है
मन रिहा हो भी जाए
पर तन….?
पिंजरे में समा गया है ……
इला सिंह
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शाम जब उतरती है
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शाम जब उतरती है आँगन में
मन कहीं भागता है पीछे
लौटते पक्षियों को देखकर
आकाश में
मन रिहाई माँगता है
मन रिहा हो भी जाए
पर तन….?
पिंजरे में समा गया है ……
इला सिंह
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