कविता
* नारी*
अबला और कमजोर नहीं
जीवन का गौरव गान हूं मैं
करुणा ममता वा दया क्षमा
कोमल भावों की खान हूं मैं ।
जीवन देने का दिव्य तत्व
जिसके अंदर सिंचित होता
प्रभु की सृष्टि में योगदान
देती विशेष इंसान हूं मैं।
कर्तव्य धर्म कर्मठता का
पाठ मैंने जगते ही पढ़ा
श्री, सरस्वती, जगदंबा से
इन रूपों की पहचान हूं मैं।
नमिता शर्मा