कविता
[22/12, 19:02] Dr.Ram Bali Mishra: राम आगमन
धरा वीर से कब खाली है?
राम आगमन पर ताली है।।
रावण को वध आये रामा।
सजी अयोध्या घर घर धामा।।
तपसी राजा राम पधारे।
अवधपुरी में जय प्रभु नारे।।
कण कण बोल रहा था रामा।
नर नारी सारे निष्कामा।।
आये राम दया के सागर।
सुख देनेवाले प्रिय नागर।।
राम ब्रह्म ब्रह्मांड अयोध्या।
सकल अवधपुर अमृत शोध्या।।
ढोल नगाड़े बजा बजा कर।
सारी जनता खुशी मना कर।।
गाते गीत सभी मानव ज़न।
दीप जलाते सुखी अवध मन।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[22/12, 19:54] Dr.Ram Bali Mishra: बहुत महान प्यार का न्योता (सोरठा )
बहुत बड़ा है प्यार,निमन्त्रण आज मिला है।
खुशियाँ बहुत अपार,लौट कर दिन आया है।।
मेरा प्यारा मित्र,सदा वह पास बुलाता।
गमके जैसे इत्र,दिल में स्पन्दन नित दिखे।।
इंतजार साकार,आज बुलावा आ गया।
जीवन स्वर्णिम धार,धन्य जीवन लगता है।।
बहुत आत्म संतोष,मिली सकल है संपदा।
जीवन अमृत कोष,सफल जिंदगी अब हुई।।
सब कुछ अब बेकार,सिर्फ प्यार ही ईश है।
प्रीति मधुर रसदार,रग रग में मधु भावना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[23/12, 09:22] Dr.Ram Bali Mishra: प्यार (मुक्तक )
प्यार करो तो गम मिट जाये।
घृणा करो तो दम घुट जाये।
साथ रहेगा प्यार हमेशा।
कष्ट क्लेश सब कुछ कट जाये।
प्यार रचेगा अमर कहानी।
बनी रहेगी सदा जवानी।
होगा नहीं अभाव कभी भी।
बने जिंदगी मधुर सुहानी।
प्यार गंग में खूब नहाओ।
निर्मलता का अलख जगाओ।
करो भरोसा सदा प्यार पर।
मन का पावन पर्व मनाओ।
मिले प्यार को मत ठुकराना।
इस अवसर को नित्य भुनाना।
यही सरस रस का वारिद है।
स्नेह नीर से सहज नहाना।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[23/12, 15:31] Dr.Ram Bali Mishra: जाना कहीं न दूर (अमृतध्वनि छंद )
जाना कहीं न दूर प्रिय,रहना दिल के पास।
सफल जिंदगी का यही,अति मधुरिम अहसास।।
अति मधुरिम अहसास,बहाये,अमृत सागर।
हो मादकता,बहुत मधुरता,मधुमय गागर।। सदा चहकना,नित्य किया कर,मधु जलपाना।
नज़र मिलाते,नेह लगाते,प्रिय रह जाना।।
प्यारे प्रियतम भाव रख,तेरा ही दरकार।
बिना तुम्हारे जिदगी,का है नहीं करार।।
का है नहीं करार,श्वांस भी, दूर भगेगा।
मन विचलित हो,उदासीन हो,नित भटकेगा।।
तुम हो मेरे,एक मात्र बस,नयन सितारे।
साथ रहो तुम,अंतिम इच्छा,य़ह है प्यारे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[23/12, 20:50] Dr.Ram Bali Mishra: अवध में ढोल बजे
(गीत)
रामेश्वर परमेश्वर ज्ञानी।
स्वयं ब्रह्म अति प्रिय सम्मानी।।
राम नाम की गूंज,अवध में ढोल बजे।
सफ़ल हुआ निर्माण,अवध में ढोल बजे।।
मन्दिर बनकर हुआ खड़ा है।
दीवारों पर रत्न जड़ा है।।
बहुत भव्य य़ह नव निर्माण।
सदा प्रतिष्ठीत रघुवर प्राण।।
सहज प्रफुल्लित नर अरु नारी।
लगे अयोध्या अनुपम प्यारी।।
आये हैं पुनि राम,अवध में ढोल बजे।।
सरयू मैया गीत सुनाती।
लहरों में है प्रीति सुहाती।।
खुश होते श्री राम,अवध में ढोल बजे।।
बहुत दिनों के श्रम का य़ह फल।
रामचन्द्र का मन्दिर निर्मल।।
दिव्य भव्य रघु राम,अवध में ढोल बजे।।
कण कण हँसते जगमग जगमग।
सूर्य चन्द्र तारे हर पग पग।।
घर घर मधु संगीत,अवध में ढोल बजे।।
मन्दिर का निर्माण जोहते।
स्वर्ग लोक को गये सोचते।।
परम अलौकिक मन्दिर धाम।
प्रकट हुए प्रभु राजा राम।।
पूजन अर्चन नित अभिनंदन।
रघुवर दिव्य राम का वन्दन।।
अवधपुरी में राम,हमेशा ढोल बजे।।
मंदिर का है रूप मनोरम।
यही राम का घर सर्वोत्तम।।
दिव्य ईश का धाम,अवध में ढोल बजे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/12, 10:03] Dr.Ram Bali Mishra: आये राजा राम,अवध में खुशहाली (गीत )
आये राजा राम अवध में।
छायी खुशियां सब के घर में।।
भाव विभोर हुए नर नारी।
सजा अवध जिमि दुल्हन प्यारी।।
आये राजा राम,अवध में खुशहाली।
मस्ती की बौछार,अवध में हरियाली।।
राम राज फिर से घर आया।
साहचर्य राघव का पाया।।
झूम उठी प्रिय सारी नगरी।
राजा रामचन्द्र की सगरी ।।
उछल पड़े सब लोग,अवध में दीवाली।
सबका मन है मस्त,अवध में खुशहाली।।
सीता राम लखन घर आये।
बालक युवक वृद्ध सुख पाये।।
कण कण में उल्लास उमंगा।
अति प्रसन्न मां सरयू गंगा।।
वंदनीय प्रभु राम,अवध में हरियाली।
जय जय सीताराम,अवध में खुशहाली।।
सारा देवलोक उतरा है।
ब्रह्मा विष्णु महेश धरा है।।
मनी अयोध्या देव दिवाली।
रामरूपमय अवध पियाली।।
पूजनीय श्री राम,अयोध्या मतवाली।
जय जय की हुंकार,अवध में खुशहाली।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/12, 14:54] Dr.Ram Bali Mishra: वाचाल (वर्णिक छंद )
11 वर्ण
मापनी : 221 221 221 22
वाचाल भूचाल लाता रहा है।
पाताल को भी जलाता रहा है।
आकाश में घूमता चाल खेले।
पृथ्वी उठाता मचाता झमेले।
गाता सुनाता स्वयं की कहानी।
बातें बनाता सजाता जुबानी।
भाती नहीं अन्य की बात प्यारी।
चालाक होना यही है विमारी।
पाता नहीं है कभी प्रेम प्याला।
बोले सदा मूर्खता में निहाला।
पाये न सम्मान क्वारा रहेगा।
कोई नहीं काम माठा महेगा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/12, 15:42] Dr.Ram Bali Mishra: पहली किरण
पहली किरण सृष्टि की द्योतक।
पूरे दिन की यह उद्घोषक।।
सूत्रधार यह भाग्य उदय की।
भविष्यवाणी विजय प्रलय की।।
यही बताती क्या होना है?
क्या पाना अरु क्या खोना है??
निशा चीरकर यही निकलती।
दिवा बनी यह स्वयं चहकती।
यह पृथ्वी का मोहक कलरव।
प्रथम साहसिक उत्तम उत्सव।।
शुभ प्रभात की राह दिखाती।
सारे जग को सहज मिलाती।।
जीवन की शुरुआत यही है।
मानवता का प्रात यही है।।
यही सभ्यता आरंभिक है।
कुशलक्षेम य़ह प्रारंभिक है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/12, 16:32] Dr.Ram Bali Mishra: डॉ0 रामबली मिश्र की कुंडलिया
रहते हो उर में बसे,सदा लगाये नेह।
प्रेमातुर हो सर्वदा,बने प्रीति का गेह।।
बने प्रीति का गेह,तुम्हीं हो प्यारा सपना।
केवल तुझको छोड़,नही है कोई अपना।।
कहें मिश्र कविराय,हृदय की सबकुछ कहते।
नहीँ छुपाते मर्म,गीत बन हरदम रहते।।
करते मधुरिम बात हो,प्रीति शारदा भाव।
अन्दर की हुंकार ही,तेरा मधुर स्वभाव।।
तेरा मधुर स्वभाव,मोहिनी मंत्र बना है।
हरते सारे कष्ट,तुझे ही हृदय चुना है।।
कहें मिश्र कविराय, तुम्हीं केवल मन भरते।
रहते भाव विभोर,सत्य प्रिय बोला करते।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/12, 18:04] Dr.Ram Bali Mishra: छुपकर
मात्रा भार 11/11
छुपकर करना प्यार,ज़माना दुश्मन है।
जलते सारे लोग,नहीं अपनापन है।।
दिल को जाने कौन,दिवाला मन लगता।
रोता दिल का प्यार,शून्य सा य़ह दिखता।।
यहाँ सदा तकरार,प्यार में आंसू है।
खत्म रक्त सम्बन्ध, खून के प्यासू हैं।।
बढ़ता ईर्ष्या द्वेष,प्यार की हत्या है।
कहते भूत पिशाच,प्यार कब सत्या है??
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[25/12, 11:07] Dr.Ram Bali Mishra: भगवान शिव के दोहे
सोमवार का दिन शुभग,शिव जी करें निवास।
शंकर जी की वंदना,का हो नित अभ्यास।।
बने देव कल्याण का,करते परहित काज।
माहेश्वर के रूप में,रचते सुखद समाज।।
अवढरदानी भव्य मन,दीनदयाल कृपाल।
अति प्रसन्न हो शीघ्र ही,जग को करें निहाल।।
उमा सहित रहते सदा,प्रिय काशी के धाम।
अलख जगाते घूम कर,भजते घर घर राम।।
राम नाम से प्रेम है,रामेश्वर शिवराम।
रघुवर में प्रभु शिव दिखें,शिवशंकर में राम।।
प्रिय पर्वत कैलाश पर,तपसी प्रभु शिवनाथ।
माहेश्वरि को संग रख,देते सबका साथ।।
डमरू लेकर नाचते, शोभित अति मृगछाल।
सर्प गले में डाल कर,करते रक्षापाल।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[25/12, 16:32] Dr.Ram Bali Mishra: चलो मातृ दरबार,मगन हो नाचेंगे
चलो करें गुणगान,हृदय से गायेंगे।
माता का संज्ञान,हृदय में लायेंगे।।
माता जी हैं भोलीभाली।
ज्ञान रसीली प्रेमिल प्याली।।
काव्य रचयिता अमृत वाणी।
विद्यादानी ज़न कल्याणी।
चलो मातृ के धाम,मगन हो नाचेंगे।
करूँ मातृ की भक्ति,भजन नित गायेंगे।।
हंसवाहिनी मां का वन्दन।
दिल से करता हूँ अभिनंदन।।
माँ का मोहक पंथ चाहिए।
दिव्य मनोहर ग्रंथ चाहिए।।
माँ वीणा आराध्य,नित्य आराधन हो।
पूजन होगा रोज,सत्य अभिवादन हो।।
तुम आनंद गेह माता हो।
महा दयालू शिव ज्ञाता हो।।
सत्य सनातन धर्म पालिका।
शीलगामिनी न्याय पालिका।।
चलो करें गुणगान,हृदय से गायेंगे।
सीखेंगे हर चीज़,हृदय में लायेंगे।।
सत्य विवेकी मधु रचना हो।
अमृत धारा प्रिय वचना हो।।
विनयशील विज्ञान तुम्हीं हो।
शिवपथ दर्शन भान तुम्हीं हो।।
सदा रहेंगे साथ,मगन हो नाचेंगे।
दे मां श्री आशीष,तुझे अपनायेंगे।।
सदा रखेंगे ध्यान,तुझे नित पायेंगे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/12, 12:16] Dr.Ram Bali Mishra: माया (गीत)
तन माया है धन माया है।
कद माया है पद माया है।।
माया है संसार,जगत की रीति यही।
सब झूठा व्यापार,जगत में प्रीति नहीं।।
सर सर सर सर सब कुछ सरके।
जग नश्वर पर मन में थिरके।।
मृग तृष्णा को देख,सभी में चाहत है।
भाग रहे हैं लोग,किन्तु मर्माहत हैं।।
माया के पीछे सब अंधे।
करते गलत सही हैं धंधे।।
माया में बर्बाद,सभी अति व्याकुल हैं।
रोते गाते लोग,बहुत ही आकुल हैं।।
माया पीछा कभी न छोड़े।
हाथ पकड़ कर बाँह मरोड़े।।
करे सदा अपमान,धोख य़ह माया है।
जीवन है बेहाल,ठगिनि य़ह माया है।।
बीत रहा है सारा जीवन।
बहुत दूर है दिव्य सम्मिलन।।
कैसे हो उद्धार,नचाती माया है।
परमेश्वर का नाम,न लेती माया है।।
रसिया बनकर छलती रहती।
मिथ्या को सच कहती चलती।।
सदा खेलती चाल,बड़ी मायावी है।
मोहक नाटकबाज,जीव की चावी है।
सारी दुनिया मायापुर है।
नहीं दीखता हरिहरपुर है।।
यहाँ सत्य का लोप,झूठ य़ह माया है।
झूठ लेन अरु देन,असत मधु माया है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/12, 16:33] Dr.Ram Bali Mishra: राम नाम (गीत)
राम नाम की विजय पताका।
लहराती त्रैलोक पताका।।
घर घर में हैं राम समाये।
हर मन्दिर में राम सुहाये।।
कर लो प्रभु का ध्यान,जगत में आये हो।
बहुत दिव्य सौभाग्य,राम को पाये हो।।
राम अनंत व्योम के द्योतक।
परम प्रतापी अमृत रोचक।।
ज्ञानवान धनवान धीर हैं।
दया धर्म के नावनीर हैं।।
भज लो प्रभु का नाम,राम अवतारी हैं।
करो नित्य संवाद,राम सुविचारी हैं।।
औषधि राम रसायन नामा।
शक्ति विधाता सद्गुण धामा।।
राम नाम का जतन करो प्रिय।
भव सागर से पार उतर प्रिय।।
राम नाम है सार,प्यार से कहना है।
य़ह संसार असार ,राम को भजना है।।
सीताराम नाम सुखदायी।
चार विमल पुरुषार्थ प्रदायी।।
जीवन का है अर्थ इसी में।
लगा रहे मन राम नाम में।।
राम नाम का जाप,करो नित तुम प्यारे।
यही मुक्ति का मार्ग,नाम य़ह तुझे उबारे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/12, 19:13] Dr.Ram Bali Mishra: लेते तेरा नाम
मात्रा भार 11/11
लेते तेरा नाम,हृदय में आते हो।
लिखकर मोहक गीत,प्रेम से गाते हो।।
सुनकर करुण पुकार, पिघल तुम जाते हो।
रहते सदा प्रसन्न,सहज मुस्काते हो।।
कभी नहीं आलस्य,शीघ्र चल देते हो।
मिलता अनुपम स्नेह,हृदय हर लेते हो।।
तुम्हीं बने हो प्राण,प्रीति के राही हो।
लिखते मधुरिम पत्र,लेखनी स्याही हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[27/12, 16:41] Dr.Ram Bali Mishra: प्रेम बाँटते चलो (गीत )
प्रेम बाँटते चलो यही मनुष्य धर्म है।
राह में मिले मनुष्य को नहीं नकारिये।
देखते दुखी मनुष्य को गले लगाइये।
योग भावना रहे यही पुनीत कर्म है।
प्रेम बाँटते चलो यही मनुष्य धर्म है।।
जिंदगी रहस्य है इसे सदैव खोलना।
वेदना सहो सदैव भद्र शब्द बोलना।।
जिंदगी विनम्र हो यही सुसत्य मर्म है।
प्रेम बाँटते चलो यही मनुष्य धर्म है।।
पंथ दिव्य है यही विवेक का विकास हो।
मान ज्ञान वृद्धि हो विपन्नता उदास हो।
प्रेरणा खिले सरोज सी यही सुकर्म है।
प्रेम बाँटते चलो यही मनुष्य धर्म है।।
कृत्य में पवित्रता सुधा समान भाव हो।
शिष्टता खड़ी सदैव छोड़ती प्रभाव हो।
शोक कष्ट क्लेश खेद अर्जना अधर्म है।
प्रेम बाँटते चलो यही मनुष्य धर्म है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/12, 15:37] Dr.Ram Bali Mishra: चेतना ( गीत )
चेतना जगा रही बुला रही मनुष्य को।
चेतना बिना मनुष्य दीन शर्मसार है।
जानता न भाव को न अर्थ की पुकार है।।
गूंज ज्ञान रत्न की बना रही मनुष्य को।
चेतना जगा रही बुला रही मनुष्य को।।
आस पास का नहीं जिसे कदापि ज्ञान है।
जिंदगी स्वभाव पक्ष का जिसे न भान है।।
सत्य का न बोध है अचेत से मनुष्य को।
चेतना जगा रही बुला रही मनुष्य को।।
आत्म बोध में छिपी विशालकाय चेतना।
सभ्यता सजा रही सशक्त नींव चेतना।।
चेतना सिखा रही मनुष्यता मनुष्य को।
चेतना जगा रही बुला रही मनुष्य
चित्तवृत्ति के निरोध में सहाय चेतना।
आत्म लोक दिव्यमान में प्रकाश चेतना।।
चेतना दिखा रही ध्वजा सदा मनुष्य को।
चेतना जगा रही बुला रही मनुष्य को।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/12, 17:38] Dr.Ram Bali Mishra: काम
काम काज हों सभी परंतु बात हो नहीं।
बात अर्थहीन है यहाँ न अर्थ है कहीं।
अर्थहीन हो रहा मनुष्य रूप भाव है।
लोक कर्म अर्थयुक्त अर्थ का प्रभाव है।।
स्वार्थ ही सवार है, न बात चीत अर्थ है।
स्वार्थ रंगदार है मनुष्य वर्ण व्यर्थ है।।
बात द्रव्ययुक्त हो यही विचार सत्य है।
अर्थहीन बातचीत सर्वदा असत्य है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/12, 18:40] Dr.Ram Bali Mishra: प्रेत जिंदा है
प्रेत आज जिंदगी बना हुआ अमर्त्य है।
सत्यहीन है भले परंतु अद्य सत्य है।।
प्रेत नाचता सिरे मरा नहीं जिवंत है।
दौड़ दौड़ काटता अशांत है असंत है।।
सोचता यही रहा मरा हुआ न लौटता।
किन्तु आ गया तुरन्त प्रेत भाव दौड़ता।।
प्रेत से बचे रहो कभी उसे न घेरना।
दूर ही रहो सदा उसे कभी न हेरना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[29/12, 13:09] Dr.Ram Bali Mishra: दुख से मुक्ति के दोहे
हर स्थिति सिखला रही,हर मानव को काम।
सुख हो अथवा दुख पड़े,भजो कर्म का नाम।।
करे निरंतर कर्म जो,भूले सारे कष्ट।
कर्म निष्ठता सतत से,सब दुख होते नष्ट।।
दुख से मुक्त सदा करे,क्रिया योग अभ्यास।
दुख चिंता से हर मनुज,रहता नित्य उदास।।
लगे कर्म में मन सदा,य़ह है उचित उपाय।
कर्मनिष्ठ मन मंत्र ही,बनता सदा सहाय।।
कठिन घड़ी को पार कर,करो कर्म से प्यार।
जिसको कृति से प्रीति है,वह करता दुख पार।।
दुखद विंदु पर मत करो, कभी किसी से बात।।
दुश्चिन्ता करती सदा,दुखिया पर आघात।।
दुख में भी वह बात हो,जिसमें सुख का भाव।
वार्ता कभी करो नहीं,जो दे दुखता घाव।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।