कविता
श्रेयसी सुनो…
…. क्षेत्रपाल शर्मा
ओ स्वर्ण घट
ओ मेरी सोनचिरिया
ओ हिरण्यगर्भ
सब , खसोटने को ललचावैगे
तुम संभलकर रहना
चाहे
देखो
आधा सृष्टि , सुप्त अवस्था व
आधे मे सारे लोक,
लिए फिरते हो
श्रेयसी सुनो
जो कंचन घट है इसमें केवल अमृत है शब्द,
शब्दों के अर्थ समझो सच ही कह रहा हूं छल बिल्कुल नहीं
जो मैं कह रहा हूं, जो सुन रही हो जो समझ रही हो और देख रही हो ,वही सच
शब्दों का कोई मायाजाल नहीं मेरे अर्थ भी वही
कि, झूले भी,
बेमतलब नहीं झुलाता
कोई बूढों के लिए कोई पालने नहीं डालता, न डालेगा
जैसे सुनो
आपके सानिध्य से मेरा मन , मेरा तन, मेरी आत्मा
पुलकित हो जाती है
उड़ान सच्ची हो
तितली उड़ ती है तो
नजर फूलों पर
बतियाना
आसपास फिरना
और , बाज,
और उस की उड़ान
मंतव्य के अनुरूप होती है
पत्थर मारने वालों को हम फल दें,
और तोडने वालों को हम महकाऐं,
यही है जीवन,
हम अपने लिए नहीं जीते
( 19/17, शान्तिपुरम, आगरा रोड,
अलीगढ़ 202001)