कविता
मेरे मन की बेकल पीर है कविता!
जो सबको करे अधीर है कविता!!
कभी मन को हौले से सहला जाए!
औ जो घाव करे गम्भीर है कविता!!
कभी जो कल-कल बहती नदिया,
कभी समंदर खारा-नीर है कविता!!
जो कभी उडा ले जाए अंधड सा,
कभी भोर का मंद समीर है कविता!!
तुम क्या जानो,और क्या समझो?
मेरे लिए तो मेरा ज़मीर है कविता!!
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट ,कवि पत्रकार
202नीरव निकुज.सिकन्दरा,आगरा-282007
9412443093