तुम्हारा शिखर
मैं समझ सकती हूँ
तुम्हे अपना शिखर चाहिए ।
किन्तु तुम जिस रास्ते से
वहां पहुंचना चाहती थी,
वो रास्ता आकर्षक तो था
पर थोड़ा ऊपर जाकर
फिर पुनः ढ़लान पर है,
जहां से तुम गिर सकती थी,
चोट लग सकती थी।
उस रास्ते पर पाने से ज्यादा
खोने का भय था,
इसीलिए तुम्हें रोका ।
तुम्हारा विश्वास डगमगा गया ।
तुम्हारे स्वप्न नीड़ पर
मंडराती चील नहीं मैं
तुम्हारे हाथ से बस
मैंने कमजोर तिनके गिराए
ताकि नीड़ कमजोर न हो ।
तुम्हें जो यात्रा तय करनी है,
मैं उसे वर्षों पहले तय कर
निरन्तर यहीं टिकी हूँ ।
मैं इसके जर्रे – जर्रे से
भलीभांति वाकिफ हूं ।
यहाँ सब उतार-चढ़ाव
मैं भलीभाँति पहचानती हूं ।
मैं कभी नहीं चाहूँगी
कि तुम मेरे होते हुए भी
यहां रास्ता भटक जाओ ।
विश्वास रखो, मैं भी तुम्हें
शिखर पर देखना चाहती हूं
पर बिना नुकसान के ।
जब तुम वहां मुस्कुराओगी
तो मेरे आंगन में भी
फूल खिल कर महक उठेंगे।