कविता
जिसने जैसी समझी कविता ।
उतनी उसके अतन्स पहुंची ।।
साहित्य सरोवर नीर लिए ।
जा गहरे मन मानस पहुंची ।।
कवि का है प्रतिबिंब जगत ।
कल्पना सृजन हित होती हैं ।।
खुशियों के अम्बारों से ले ।
पीड़ाएँ जहां तक रोती हैं ।।
उत्थानों के स्वर में जाती है ।
पतन निकट नीरस पहुंची ।।
जिसने जैसी समझी कविता
उतनी उसके अतन्स पहुंची ।।
✍️सतीश शर्मा ।