कविता
क्या तुम धुप बनोगे … ?
एक रात के लिए … ?
और बरस जाना
सुबह तक…
मेरा गिलाफ सूखने तक…
तब तक
रात और सुबह को
मुट्ठी में थामें रखना…
आस मेरी बांधे रखना…
क्या बरसोगे तुम मुझ पे ?
धुप बन कर …
अंधेरों से छनकर…
शर्त ये है …
अंधेरा मेरे हिस्से का
तुम्हे भी भोगना होगा
निशाचर बनकर …
~ पुर्दिल
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