कविता
#खततुम्हारेलिए
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लो,फिर से ली है,
मेरी मोहब्बत ने
सुरीली हिचकी।
चमका है तुम्हारा नाम,
मैं भी महसूस कर रही हूँ
वही पुलक,
वही पागलपन
वही एहसास।
ध्वनि के साथ मिल रही हूं,
मैं तुममे और नाम के साथ
उभर रहा है तुम्हारा
अक्स मेरे हाथों में
ये खत तुम्हारे नाम है
लेकिन तुम तक नही पहुँचेगा
कैसे मनाऊँगी मेघो को
कैसे बुलाओगी हवाओ को
और मना भी लूं
तो कहां से दूँगी तुम्हारा पता
जानती हूं तुम जो डूबे हुए हो
चिट्ठी नामे मैं…….
तुमको भी कहाँ आदत है
डाकबाबु की चिट्ठी
का इंतजार करने का।
कौन जाने कैसी होगी
वो शबनबी सुबह
सच कितना मासूम
होगा वो लम्हा
जब महीनों की
मसक्कत के बाद
धड़कते दिल के साथ
किसीं ने पहली बार
लिखा होगा खुशबुओ से
भीगा हुआ वो खत
एक अधूरी शुरुआत और
मुकम्मल जज्बात से भरा खत
जिसे पढ़कर और भी
गुलाबी हो गया था
एक गुलदाउदी चेहरा।।