"जग स्तंभ सृष्टि है बिटिया "
सच समझने में चूका तंत्र सारा
हम अपना जीवन अधिकतम बुद्धिमत्ता के साथ जीना चाहते हैं, इसका
শিবকে ভালোবাসি (শিবের গান)
बोले सब सर्दी पड़ी (हास्य कुंडलिया)
क्यों तेरी तसवीर को दिल में सजाया हमने
23/175.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
गंगा सेवा के दस दिवस (द्वितीय दिवस)
मजबूरियां रात को देर तक जगाती है ,
मैंने कभी भी अपने आप को इस भ्रम में नहीं रखा कि मेरी अनुपस्थ
कदम बढ़ाकर मुड़ना भी आसान कहां था।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
मेरा लोकतंत्र महान -समसामयिक लेख
वो बचपन का गुजरा जमाना भी क्या जमाना था,
पहले आसमाॅं में उड़ता था...
सर्द रातें
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)