कविता
रविंद्रनाथ टैगोर की बंगला कविता का हिंदी अनुवाद
कभी कभार
हो जाती है तुम से मुलाकात
ओ प्रिय प्रभु,
क्यों नही मिल जाते तुम
हो जाओ हमेशा मेरे साथ
क्यों छा जाते हैं
मेरे मानस गगन में बादल
बन जाते दीवार
होने नहीं देते मुलाकात।
बन्द खुली पलकों में
कौंध जाता तुम्हारा ज्योतित स्वरूप
तभी भर जाता डर का अहसास
कहीं खो न दू तुम्हें
खो देता हूं तुम्हे अचानक, तुम्हारा हाथ
ओ प्रभु, बताओ न कैसे पाउूं तुम्हें
रख लूं अपने हृदय में और बंद कर लूं कपाट
तुम्हें पाने के बाद
नही रहेगा शेष कुछ पाना
यहीं है वायदा मेरा हमेशा के लिये तुम्हारे साथ
क्हो तो त्याग दूं सभी ईच्छायें,
अभिलाषायें और दुनिया का साथ।
कभी कभार,
हो Jatee है तुम से मेरी मुलाकात ।
Translation. Santosh Khanna