कविता
क्यों हाथ कटोरा लिए हुए बचपन सड़कों पर आया है?
क्यों भूख, गरीबी, लाचारी का बादल देश पर छाया है?
हर संकट की एक वजह नित बढ़ती भ्रष्टाचारी है,
निज स्वार्थ में अंधे होकर हमने, भ्रष्टाचार फैलाया है,
दीमक जैसे चिपट गये कुछ देश को हर पल चाट रहे हैं,
प्रेम भाव की शाखाओं को माली बनकर काट रहे हैं,
अपराध दशानन बन बैठा है राम रूप दिखलाना होगा,
भ्रष्टाचार की लंका को हमें मिलकर आग लगाना होगा,
भारत माँ के सीने पर अब कोई वार नहीं होगा,
हिंदुस्तान का मातम में कोई त्योहार नहीं होगा,
चोरी घूसखोरी के सब बाजार बंद हो जाएंगे,
वीरों की धरती भारत में भ्रष्टाचार नहीं होगा,
आओ साथी मिलकर हम सब आज पहल कर लेते हैं,
भ्रष्टाचार की जड़ को ही अब काट अलग कर देते हैं,
भ्रष्टाचार के दलदल से अब देश को बाहर लायेंगे,
नए भारत की एक सुनहरी सी तस्वीर बनायेंगे।