कविता- 2- 🌸*बदलाव*🌸
कविता -2 🌸 बदलाव 🌸
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हर चीज – हर बात बदल रही है
क्यूँकि समय जो बदल रहा है
समय के कई हाथ -पैर होंगे
तभी तो चक्र सा चलता है
अगर उसके जुबान होती तो क्या होता?
अच्छा- बुरा सब कहता सच -झूठ भी
नहीं भी है तो भी सब सिखा देता है,
मीठी मार देकर भी पिला कड़वा घूँट भी
बाज़ी में जीत मिले कि हार हो जाये
वो जिला दे या मौत के घाट भी ले जाये
पीठ पर थपकी देकर चेता भी देता है
और आँखों के सामने भी भरमा भी दे।
कोई नहीं जानेगा कि उसने क्या किया
दूसरों के किये पर ऊँगली ही उठाएगा
अपने कर्म को खुद परखेंगे तो समझेंगे
आँखों मे पर्दा पड़ा हो तो खुद उलझेंगे
सुख -दुख की वेदना का अंत नहीं है
सिक्के के हैं दो पहलू पलटते रहते हैं
कौन है ऐसा जो सिक्का नहीं उछालता
समय अपने पाले में हो तो ही भला लगता
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