कविता
जुआ खेलते हुए बच्चे
बड़े ही
अच्छे लगते हैं
जुआ खेलते हुए बच्चे
कुछ चुनिंदा जगहों पर ,
आपने भी
जरूर
देखा होगा।
कहीं
मैले कुचैले अधनंगे
कहीं
कुछ रईस जादे
कहीं
कुछ भिखमंगे ।
फ़र्क खेलने में नहीं है
देखने में है
एक
को देखते हैं
इज़्ज़त से ,
और दूसरे को नफरत से ।
-अजय प्रसाद