कविता
ग़म धूप ख़ुशी छांव की तरह
कभी सुबह कभी शाम की तरह
मंज़र तो आज भी वही है यारों
मगर जिन्दगी गुज़रे नाव की तरह
कई जगह घूमने गए हम मगर
नहीं मिला सुकून मेरे गांव की तरह
नूरफातिमा खातून “नूरी”
13/4/2020
ग़म धूप ख़ुशी छांव की तरह
कभी सुबह कभी शाम की तरह
मंज़र तो आज भी वही है यारों
मगर जिन्दगी गुज़रे नाव की तरह
कई जगह घूमने गए हम मगर
नहीं मिला सुकून मेरे गांव की तरह
नूरफातिमा खातून “नूरी”
13/4/2020