कविता
उलझा दिया उन्होंने मोहब्बत में इस तरह।
दामन किसी गुलाब का काँटों में जिस तरह।
इस कश्मकश में हूँ मैं कहूँ या कि ना कहूँ,
चावल-सा है वो काँटा निकालूँ तो किस तरह?
✍?’रोली’ शुक्ला
उलझा दिया उन्होंने मोहब्बत में इस तरह।
दामन किसी गुलाब का काँटों में जिस तरह।
इस कश्मकश में हूँ मैं कहूँ या कि ना कहूँ,
चावल-सा है वो काँटा निकालूँ तो किस तरह?
✍?’रोली’ शुक्ला