#कविता : हुनरमंद मानव
#कविता : हुनरमंद मानव
सौरभ शूलों में भर देता।
पत्थर को मोम बना लेता।।
बंजर में हरियाली लाए।
हुनरमंद मानव बन जाए।।
रोते को जो सदा हँसाए।
प्यासे की भी प्यास बुझाए।।
भूखे की जो भूख मिटाता।
हुनरमंद मानव बन जाता।।
थके पथिक में साहस भरता।
कठिनाई से कभी न डरता।।
गिरते को जो हँसा उठाए।
हुनरमंद मानव बन जाए।।
मिलनसार हो जिसकी फ़ितरत।
लाचारों पर करता रहमत।।
प्रेरित करके मार्ग दिखाए।
हुनरमंद मानव कहलाए।।
सोच बड़ी हो अच्छी नीयत।
मनहर होती जिसकी सीरत।।
करे प्रशंसा मान बढ़ाए।
हुनरमंद मानव कहलाए।।
भेद जलन से रखता दूरी।
ग़ैरों की समझे मज़बूरी।।
दया प्रेम रस हृदय समाए।
हुनरमंद मानव कहलाए।।
सत्य वचन की महिमा जाने।
सही ग़लत को जो पहचाने।।
उचित फ़ैसला जिसको भाए।
हुनरमंद मानव कहलाए।।
जाति धर्म अरु क्षेत्र न जाने।
नेक कर्म को उत्तम माने।।
मानवता की रीत निभाए।
हुनरमंद मानव कहलाए।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना