कविता : सजा दो घर
कविता : सजा दो घर को
आज सजा दो घर को इतना, खिलता गुलज़ार नज़र आए।
सुरभियुक्त हो कोना-कोना, स्नेह प्रेम प्यार नज़र आए।।
कोई आनेवाला है घर, स्वागत करके दिल से सादर;
सुखद मनोरम अनुभूति लिए, शुभ हर व्यवहार नज़र आए।।
रिश्ते-नाते बन जाएँ जब, मंगल आभा फैला करती।
बड़े बुजुर्गों की सेवा से, ख़ुशियाँ घर में झूमा करती।।
भौतिक चीज़ों से नहीं कभी, घर में रौनक आया करती;
विश्वास मान हो सबका तब, सुंदरता नित छाया करती।।
मेलजोल नवल विचारों से, बुद्धि शुद्धि के संस्कारों से।
पूजा मन से मन की करके, अपनेपन के उपहारों से।।
आज सजा दो घर को इतना, स्वर्ग उतर आए आँगन में।
एक दूसरे का आदर कर, ओज भरे उर उद्गारों से।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना