कविता – शिक्षक
जैसे माली पौधों को सही करता है नित काट – छाँट कर ,
वैसे ही शिक्षक छात्रों को सही करता है डाँट – डाँट कर ।
कुम्भकारवत् छात्रों पर ऊपर से तो करता है बार ,
माँवत् अन्दर से छात्रों से वही शिक्षक करता है प्यार ।
वर्तनवत् जो चमकाता है छात्रों को नित माँज – माँजकर ।। जैसे …….
अनुभव के अनमोल कणों से जो छात्रों को सिखलाता है ,
खुद जलकर जो दीपकवत् छात्रों को सत्पथ दिखलाता है ।
छात्रों को जो शिक्षा देता ज्ञान को सब में बाँट – बाँट कर । जैसे …………..
Blackboard पर चौक घिस – घिस कर जो छात्रों को नित है पढाता ,
ICT का प्रयोग करके जो छात्रों को खूब सिखलाता ।
जो छात्रों को आगे बढाता उनकी योग्यता माप – माप कर ।। जैसे ………
समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वास को दूर भगाता ,
भूले – भटके वेबस लोगों को जो नित नयी राह दिखाता ।
जो समाज को आगाह करता आशंका को भाँप – भाँप कर ।। जैसे ……….
ब्रह्मा विष्णु कहाने वाले को माना ईश्वर से बढकर
जग को प्रकाशित करता जैसे रवि करता आसमान में चढ़कर ।
जो उद्देश्य को प्राप्त करता जैसे मेहनती करता हाँफ – हाँफ कर ।। जैसे ……….
आज वही शिक्षक बन रहा निजी प्रबन्ध की कठपुतली ,
बंदिशों अति अल्प वेतन के कारण जिसकी हालत रहती पतली ।
भयभीत सा वह रहने वाला नित जीता है काँप – काँप कर ।। जैसे ………..
:-डाँ तेज स्वरूप भारद्वाज -: