कविता :– शायर ! सुर छेड़ दिये ……दिल वालों की महफिल में !!
शायर ! सुर छेड़ दिये …….दिल वालों की महफिल में !!
सुर छेड़ दिये हमने अपने ,
जो धधक रहे थे इस दिल मे !
कातिल मुखड़ो से भरी हुई ,
दिल वालों की उस महफिल मे !!
एक शायर इस पार खड़ा ,
एक शायर उस पार खड़ा !
शायर ने जब शेर किये ,
शब्दो को चकनाचूर किये !!
सुर से सुर की सौगात हुई ,
फिर धुआंधार बरसात हुई !
घायल हो हो कर प्राण चले ,
जब वाणी से तीर कमान चले !!
सुर दुल्हन से सजे हुए ,
जज्बातों की एक डोली मे !
रंगे हुए थे हर मुखड़े ,
मुखडों के सुर की होली मे !!
महफिल में चाँद से मुखड़े थे ,
पर मुखड़े उखड़े उखड़े थे !
शायर के हर मुखड़े में ,
भावो के टुकड़े-टुकड़े थे !!
मुखड़ो के कायल मुखड़े भी ,
मुखड़े से घायल मुखड़े भी !
मुखड़े से मुखड़े टकराते ,
मुखड़े के टुकड़े हो जाते !!
मुखड़े के हर मुखड़े नें ,
मुखड़ो को झकझोर दिये !
मुखड़े के जज्बात यहाँ ,
मुखड़े से भाव विभोर हुए !!
मुखड़े की हालत कुछ ऐसी ,
मुखड़े में फर्माया था !
टकटकी लगा हर मुखड़ा ,
मुखड़े पे गौर जमाया था !!
अनुज तिवारी “इन्दवार”