कविता :वो अभागन…….माँ
काँटों के बिस्तर पर काटा जीवन,
धूप का मातम तन झुलसाता रहा।
पाला-पोषा हृदय-स्नेह से सींचा,
वो बेटा हाथ हिलाकर जाता रहा।
परिश्रम की आँखों में सपने पाले,
करुणा-कलित ममता पलती रही।
आशा की नाव ले जीवन-सागर में,
स्नेह की लहरों से ही छलती रही।
कंकालों के पड़ाव में शामिल हुई,
तन में मांस का दीदार नहीं था।
रूह चीखती जिसकी रेगिस्तान-सी,
जीवन में संतान का प्यार नहीं था।
कोखे-फूल से सुगंध-झोंका न आया,
वक्ते-आँधी ने वो मंज़र फिर सजाया।
आँचल मिला न मिली अभागन-काया,
उसदिन माँ-ममता को बेटा रोने आया।
धिक्कार!उस पूत को, जिसके हृदय माता-पिता का प्यार नहीं।
वह पूत ही क्या कहलाया, जो वक्त पर बना मद्दगार नहीं।
“वो अभागन”,”प्रीतम”जिसको पूजना चाहिए
उसका होता क्यों सत्कार नहीं।