कविता मुश्किल नहीं होती
कविता मुश्किल नहीं होती
ये कभी मुश्किल नहीं होती
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तुम जाना अपने घर मे
कमरे की उस अलमारी से
जो बाद पड़ी है पहरों से
हाथ डाल के उठा लेना
कुछ फुटकर सिक्के
जिनसे खरीदते थे पतंगे
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भीड़ से भरे बाजार मे
खड़े होकर उन्हे उछालना
अंखे बंद करके सुनना
मिलेगी तुम्हें उनकी एक धुन
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शब्द मिलेंगे तुम्हें बाजार से
कुछ घर से, कुछ आकाश से
कल्पनाओ के धागे से
उन्हे सभालकर पिरो देना
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आँख खोलने पर दोस्त तुम्हें
मिलेगी एक खुशी जीवन की
अब तुम चाहो तो इसे
कह सकते हो कविता ।
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© — सत्येंद्र कुमार