कविता …… मां का लाडला
****** मां का लाडला *****
मेरी मां से मेरा लगाव देख
एक दिन बीवी बड़े नखरो से बोली तुमने सात जन्मों तक मेरा साथ निभाने का और मेरे साथ रहने का वचन उठाया था और तुम !
तुम हो के अपनी मां से ही चिपके रहते हो ….. क्यों
——– मैंने बड़े प्यार से अपनी *बीवी से कहा……
सुनो सप्ताह में 7 दिन होते हैं उनमें एक रविवार होता है उसकी छुट्टी होती है तुम इस जन्म को अपना रविवार समझ कर
मेरी मां और मेरे लिए छोड़ दो
बाकी के 6 जन्म मैं तुम्हारे ही तो साथ रहूंगा ।
तुम्हारे सिवा ना किसी और को अपना कहूंगा।।
बीबी कुछ गुस्से में कुछ प्यार की मिली जुली खिचड़ी पका कर बोली ….
यह इस जन्म की बेईमानी है। बहुत प्यारी तुम मां
बेटों की कहानी है।।
कल मुझे भी मां बनना है…. मैं भी यही चाहती हूं मेरा बेटा तुम्हारे जैसा
बिल्कुल तुम्हारे जैसा आदर्श वाला हो माता ! पिता से प्यार करने वाला हो।
…… किसी भी औरत का पति बेशक बीवी के लिए कितना ही नालायक !नकारा और आवारा क्यों ना हो
मगर एक मां के लिए दुलारा हो उसके बुढ़ापे का सहारा हो
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है
—–मैंने पूछा क्यों?
बीबी इस बार खुलकर मुस्कुराते हुए बोली …..
यदि मां जी ना होती ……
तो तुम नहीं होते और तुम नहीं होते ….
तो हम तुम्हारे नहीं होते।।
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डॉ नरेश “सागर”