कविता बेटियां
नमस्कार मित्रों आज आप सबके लिए मेरी एक स्वरचित कविता बेटियां प्रस्तुत है पढ़े और अपनी अभिव्यक्ति जरूर दें।
कविता:- बेटियां (स्वरचित)
जीते जी स्वर्ग का एहसास कराती है यह बेटियां।
हे दुनिया में भगवान अब भी।
इस बात का विश्वास है यह बेटियां।
कोई माने तो माने कुल का स्वाभिमान बेटों को ।
मेरे लिए तो मेरा अभिमान है बेटियां।
बेटियां यह बेटियां मेरा स्वाभिमान बेटियां।
दुख में तकलीफ में अपने हाथों से ,
दुख दर्द को कम कर ,
मां बाप को नहलाती है बेटियां।
बुढ़ापे के घाव पर ,
प्रेम और स्नेह का मरहम लगाती है यह बेटियां।
क्या देखा है तुमने कभी बेटों को ,
बेटियों की तरह मां बाप की सेवा करते हुए।
मां बाप के दुख में रहने पर भी ,
वह कठोर पत्थर सा अपने आप में मगन रहता है।
मगर बेटियां अविरल सरिता सी आती है ।
मां बाप को पवित्र निर्मल कर स्वयं धन्य हो जाती है।
क्यों न कहूं ,अभिमान है बेटियां ।
क्यों न कहूं स्वाभिमान मान है बेटियां।
देखा है मैंने इस दुनिया में बेटों को।
मां बाप को अनाथ आश्रम में लेते हुए।
देखा है मैंने बेटियों को बेटों के द्वारा,
निकाले हुए मां-बाप को,घर में पालते हुए।
बेटियां ये बेटियां अभिमान बेटियां।
बेटियां ये बेटियां स्वाभिमान बेटियां।
जीते जी स्वर्ग का एहसास कराती है।
यह बेटियां हे दुनिया में भगवान अब भी।
इस बात का विश्वास है यह बेटियां।
चतरसिंह गहलोत