कविता : फ़ितरत
वक़्त बदलता दशा बदलती, फ़ितरत नहीं बदलती है।
जो जैसा है वैसा रहता, नहीं ज़रा-सी ग़लती है।।
चाँद चाँदनी सूर्य रोशनी, भूलें नहीं कभी देना।
मेघ बरसते नदियाँ बहती, समझ प्रकृति इनकी लेना।।
साँप डसेगा बिच्छू काँटे, फ़ितरत इनकी ऐसी है।
बुरा किसी का मत मानो तुम, समझो फ़ितरत जैसी है।।
फ़ितरत से फ़ितरत मिलती जब, प्रेम तभी हो पाता है।
जैसे चुंबक का लोहे से, कितना सुंदर नाता है।।
फ़ितरत अपनी सदा बदलता, गिरगिट-सम वह कहलाता।
भूल कभी उससे मत रखना, तुम कोई रिश्ता-नाता।।
फ़ितरत जिसकी तरुवर-सम है, भला अदा करता जाए।
छाया फल लकड़ी ऑक्सीजन, देकर हर हृदय लुभाए।।
फूलों की फ़ितरत खिलना है, शूलों की चुभना होती।
फूल सुरभि से घर महकाएँ, शूल चुभें आँखें रोती।।
दोनों की मगर अहमियत है, समझो ‘प्रीतम’ अनजाने।
साथ सुहाए दोनों को ही, होंगे दोनों दीवाने।।
सबकी अपनी-अपनी फ़ितरत, सबके निज अफ़साने हैं।
कुछ दोस्त बनें कुछ शत्रु बनें, कोई प्रेम दीवाने हैं।।
आत्मा की आवाज़ न भूलो, मन को वश में कर लेना।
जीव सभी उस रब की रचना, सोच समझ हलचल देना।।
#स्वरचित रचना
#कवि : आर. एस. ‘प्रीतम’