कविता :प्रभु तेरी महिमा को कैसे बयां मैं करूँ
प्रभु तेरी महिमा को कैसे बयां मैं करूँ
तू है मालिक ,हम सब तेरी सन्तान हैं
सारी दुनिया को प्यारी मोहब्बत तेरी
तू है दाता ,हम सब बन्दे लाचार हैं
भूल करते हैं हम ,तू दया करता है
झोलियां अपने भक्तों की तू भरता है
तूने लाखों अधम पापी नित तारे हैं
महिसासुर से निशाचर भी संघारे हैं
प्रभु तुमने दिया है ये नीला गगन
तुम्ही ने रचा ये संसार है
प्रभु तेरी महिमा को कैसे बयां मैं करूँ
तू एक अद्भुत कलाकार है | |
बेसहारों को तुमने सहारा दिया
नाम जिसकी जुबां ने तुम्हारा लिया
तेरी कृपा हो जिस पर ,उसको क्या दरकार है
जिस नौका के तुम हो खेबैया प्रभु
जिंदगी का भव सागर वह पार है
प्रभु तेरी महिमा को कैसे बयां मैं करूँ
हर प्राण पर बस प्रभु तेरा अधिकार है | |
प्रभु तेरी भक्ति प्रेममय धारा है
विमल सहज आनन्दराशि न्यारा है
ज़र्रे ज़र्रे पर है तेरी मौजूदगी
पग पग ही देता ,तू सहारा है
ये धन दौलत सब झूठा अहंकार है
सब कुछ है माया ,मानस व्यर्थ तेरी जयकार है
प्रभु तेरी महिमा को कैसे बयां मैं करूँ
तू ही मालिक ,हम सब तेरी संतान हैं ||
भक्ति भाव से प्रभु जब ढूंढा है तुझे
अपने मन मन्दिर में ही तुझे पाया है
व्यर्थ घूमता रहा मैं जीवन भर
तुझे अपने पास ही पाया है
तेरी नजरें इनायत सभी पर सदा
जीवन के आखरी मोड़ पर ,सब कुछ समझ आया है
प्रभु तेरी महिमा को कैसे बयां मैं करूँ
हर घट घट पर मैंने तुझे पाया है ||