कविता पर टैक्स (लघुकथा)
कविता पर टैक्स-
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विद्रोही जी ने सरस जी को फोन किया और कहा-अरे सरस जी,ज़रा टी.वी.खोलो और समाचार चैनलों पर चल रही ज़ोरदार खबर को देखो।सरस जी बोले- आप ही बता दो, टेलीविजन क्या देखना।
विद्रोही जी- अब क्या बताऊँ, उत्तर प्रदेश की सरकार ने तो गज़ब ही कर दिया।समझ में नहीं आ रहा क्या चाहती है।
सरस जी- बात को गोल -गोल क्यों घुमा रहे हैं बंधु, क्या हो गया? खबर तो बताइए।
विद्रोही जी- उत्तर प्रदेश सरकार ने कविता सुनाने पर भी जी एस टी लगा दिया।हम लोग भी टैक्स के दायरे में आ गए।
सरस जी- पहली बात, हम नहीं; आप।दूसरी बात,मैं तो पहले से ही आप लोगों को समझाता आ रहा हूँ कि कवि सम्मेलनों में कविता सुनाया करिए, चुटकुले नहीं।आप लोग मान लेते तो मनोरंजन कर के दायरे में आते नहीं । भई, अपुन तो बहुत खुश हैं। अपने को तो कवि सम्मेलनों में जाना नहीं होता या ये समझ लीजिए कि कोई बुलाता नहीं।
डाॅ बिपिन पाण्डेय