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20 Jul 2022 · 1 min read

कविता: देश की गंदगी

कोई कह गया था चुपके से मेरे कान में…
भैया जी कलयुग आ गया है इंसान में…
आपस में ऐसे लड़ रहे जैसे हो दो सांप…
इससे पहले किसी की भावना आहत हो
मित्रों आप सब मिलकर मुझे करना माफ…
क्योंकि अब देश की गंदगी करनी होगी साफ…

मंदिर-मस्जिद छोड़ अब जा बैठे हैं लुलु मॉल
चप्पल-जूते में बैठ बनायी जा रही धर्म की वॉल
आखिर क्यों लोगों का खून रहा है खौल… ?
किन लंगूरों ने बना दिया देश का ऐसा माहौल

हर रोज हिंदू-मुस्लिम पर हो रही दिन-रात बहस
लोगों का कारोबार, धंधा हो गया तहस-नहस
युवाओं के लिए रोजगार पाना हो गया रहस
महंगाई से गरीब-मजदूरों का टूट रहा साहस

पत्रकार और समाज सेवकों को हो रही जेल
सीबीआई का चल रहा चोर-पुलिस का खेल
दंगा भड़काने वाले आरोपियों को मिल रही बेल
पॉकेट से महंगा हो रहा पेट्रोल-डीजल और तेल
शासन और प्रशासन का यह कैसा चल रहा मेल
जनता के वादों पर सरकार क्यों हो रही फेल

– दीपक कोहली

2 Likes · 4 Comments · 593 Views
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