कविता- तुकबंदी
कविता-तुकबंदी
कुछ तो खामियां रही होगी ,
लोग यूं ही बदनाम करते नहीं।
ये तो दौलत का गुरूर है
वर्ना लोग सलाम करते नहीं।।
क्यों कामनाओं की तुम भी
अब तो लगाम कसते नहीं।
चौदह वरस वनवास काटा है,
यूं ही सभी राम बनते नहीं।।
कुत्तों के भौकने से हाथी,
रास्ता बदला नहीं करते।
जो ऐब गैरों के गिनाये
वो कभी काम करते नहीं।।
आगे बढ़ने के लिए
कुछ तो करना ही पड़ेगा।
ऐसे तो बैठे बैठे किसी को
दाम मिलते नहीं।।
राना तुम प्रेम की बंशी तो बजाओ।
देखना फिर कैसे श्याम मिलते नहीं।।
***
– राजीव नामदेव “राना लिधौरी” टीकमगढ़
संपादक “आकांक्षा” पत्रिका
जिलाध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,
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