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29 Oct 2020 · 2 min read

कविता (जन्मदिन)

जन्मदिन कविता
गुरुकुल से ÷
आत्म निवेदन
जन्मदिन पर विशेष

आजादी के साथ साथ ही
हम भारत में आए।
कड़वे मीठे तरह तरह के,
अब तक अनुभव पाए।

मात शारदा रहीं सहायक,
बने सदा संतोषी।
बहते रहे समय धारा में
लिप्सा कोई न पोसी ।

सब अपनी अपनी किस्मत का बंद लिफाफा पाएँ।
तुलसीदास निराला दिनकर
के पद चिन्ह निभाएँ ।
हुआ घोर बाजारवाद
इसलिए गिरावट आई।
कवि पिछड़े, परफारमरों ने,
ही दुकान जमाई।

चुरा पठन्त, टिप्पणी, कविता, सुना रहे बहुतेरे।
मजा आ गया कहकर उनको ही आयोजक घेरे।

हमने अपनी मौलिकता की, बली न कभी चढ़ाई।
और छीन कर कभी किसी की, रोटी भी न खाई।

जानबूझकर कभी किसी के,
दिल को नहीं दुखाया।
रहे विनम्र सरल कविता का, दंभ नहीं दिखलाया।

छंद प्रबंध अलंकारों की
सरस छटा विस्तारी ।
लेकिन अबतक नहीं बन सके, हम पक्के व्यापारी ।

नहीं बन सके तो इसका भी, नहीं जरा भी दुख है।
छंद प्रसाद सभी को बाँटा, यही हमारा सुख है।

यादवेंद्र, शशिकांत, अरुण, कुल गौरव बढ़ा रहे हैं।
सक्षम, पवन, आलसी, पर्वत,
ध्वज को चढ़ा रहे हैं ।

मना ईश पंडित मनीष, प्रियांशु, भक्ति दर्शाएँ।
सौरभ, राहुल, गौरीशंकर, नंद किशोर मनायें ।

आशीषों से गुरू मनोज जी, चमका देते चोला।
अनुज, विनीत, संध्या, केतन, भाव संवारे भोला।

गुरुकुल नभशशि राहु कोरोना,
आकर ग्रहण लगाया।
नहीं मनायें गुरू जन्म दिन, ऐसा निर्णय लाया।

जन्म इकहत्तर वाँ घर बैठे, मनेगा सीधा सादा।
संचालक संकट में पाकर बदला सभी इरादा।

था उत्साह सभी के मन में , समय हुआ बेदर्दी।
दुष्ट कोरोना ने गुरुकुल में,
खुशी की हत्या कर दी ।

सबको नमन प्रणाम हमारा
भूल चूक बिसरायें, सुमन सहितसब भाव सुमनसे
प्रेम के सुमन खिलायें।।

गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश

Language: Hindi
2 Likes · 3 Comments · 412 Views
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