कविता : छलक न जाए गगरी
विषय : छलक न जाए गगरी
छलक न जाए गगरी ग़म की।
आज परीक्षा मेरे दम की।।
दर्द बताकर सबको अपना।
तोड़ूँ कैसे उनका सपना।।
अग्नि हृदय की छिपा जलूँगा।
मगर किसी से कुछ न कहूँगा।।
जैसे सूरज ख़ुद जलता है।
जगत् उजाले में पलता है।।
शेर अकेला वन का राजा।
ख़बर मिली यह बिलकुल ताजा।।
औरों से आशा मत करना।
उनकी आशा तुम हँस बनना।।
चला बाँटता ख़ुद को मानव।
गीत रचा सुख का ही अभिनव।।
स्वार्थ भरा जिसके नश-नश में।
मनुज नहीं किसी एक कस में।।
तारीफ़ करो सबकी हँसकर।
सदा रहोगे दिल में बसकर।।
प्रीतम मेरी बातें मानो।
पीर छिपा निज पर की जानो।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना