कविता खुद हो जाती है
मैं कब कविता कहती हूँ
तुम कहते हो तुमको मेरी
कविता नहीं सुहाती है।
लेकिन मैं कब कविता कहती
कविता खुद हो जाती है!
प्यार तुम्हारा,गुस्सा-नफरत
जब मुझको तड़पाती है।
हूक हृदय की शब्दों में ढल
कागज़ पर बिछ जाती है।
मेरे अंतर्मन की वेदना
जब अंगड़ाई लेती है
कलम उठा लेते है हाथ
और कविता हो जाती है।
तुमको भले शूल सी चुभती
मुझको सुख पहुंचाती है,
मैं कब कविता कहती हूँ
कविता खुद हो जाती है!
***धीरजा शर्मा**