#कविता क्या है?
फूलों महकी डार-सी , तारों के नभ दरबार-सी।
दीपों के त्योहार-सी , ख़बरों के अख़बार-सी।
हर जन मन की दाद-सी , तन यौवन संवाद-सी।
कविता तो है रूप-सी , चित हरती ये गुलज़ार-सी।
जैसे बोया पेड़ को , सींचा हरदिन ही प्यार से।
फल-फूलों से एक दिन , फूला अपने ही सार से।
घर-आँगन आनंद तरु , लाया नित फलकर खूब ही।
कविता तो है पेड़-सी , पर सदियों अमर निखार से।
कबीर तुलसी भाव की , मीरा घनानंद पीर की।
रैदास नानक भक्ति की , पंत निराला तासीर की।
बिहारी केशव शृंगार की , भारतेन्दु सरिस लकीर की।
कविता तो है तेज-सी , सूर्य-चन्द्र से राहगीर की।
लहरों-सी चंचल बड़ी , पर्वत-सी है अचल खड़ी।
वीरों-सी हरपल लड़ी , माला हो ज्यों मोती जड़ी।
सावन-सी करती झड़ी , नभ-सी है ऊपर ना पड़ी।
कविता तो है प्रेरणा , अल्लाहदीन की ज्यों छड़ी।
जैसे गंगा-जल लगे , ये कोई सीता फल लगे।
मनभावन-सा पल लगे , सुंदर सुरभित-सा कल लगे।
प्यारी-सी हलचल लगे , खिलता हँसता शतदल लगे।
कविता तो है प्रेम-सी , नव दुल्हन का आँचल लगे।
हरी-भरी धरती लगे , बर्फ़ मेघ से गिरती लगे।
दवा दर्द को हरती लगे , गौर देह जल तरती लगे।
आशा मन भरती लगे , संभावना निखरती लगे।
कविता तो है मूल्य-सी , हर हाल में सँवरती लगे।
#आर.एस.’प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित कविता–radheys581@gmail.com