कविता के ब्रह्मराक्षस!
शीर्षक- कविता के ब्रह्मराक्षस
विधा- कविता
संक्षिप्त परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर,राजस्थान।
मो. 9001321438
भय खाती है आज कविता,
छिप-छिप के आती मुझ सन्मुख।
‘कवि-मनु’ को आगे करके,
फिर! प्रवृत्त हो जाते शब्द उन्मुख ।
शब्द-जाल का अर्थ-चक्र,
बिन सोचे गढ़ते अर्थ-वक्र।
वर्ण्य-अवर्ण्य विचार शेष,
शब्द जादू छल पाखंड अवशेष ।
यति लय तुक का कोई नाम नहीं,
काव्य के शास्त्र का कोई काम नहीं।
कोई नशेड़ी मधुशाला के प्याला तोड़े,
ब्रह्मराक्षस कविता को ठीक वैसा जोड़े।
मंचों से मधुर-ओज हूँकार भरे!
पर्दे पीछे लक्ष्मी उपकार करें ।
जन-व्यथा का नाम नहीं,
सिवा झूठी व्यस्तता काम नहीं।
भाषा की खिचड़ी करते जाते,
राजनीति में मरते जाते ।
‘ज्ञानीचोर’ कोविद बनते जाते,
ब्रह्मराक्षस कविता के उड़ते जाते।