कविता की रचना
कितना कुछ
लिखा जा सकता था
कितना कुछ
बनाया जा सकता था
पेंसिल और पन्ने लेकर
देश के नक्शे
बनाये जा सकते थे
किन्तु मैंने नक्शे बनाना
उचित नही समझा
एक समय के बाद
सीमाओं का विस्तार संभव है
एक देश को तोड़कर
छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटा
जा सकता है-
नदियों पर
पुल बनाये जा सकते थे
किंतु एक समय के बाद
नदियों के सूखने पर
लोग पुल को छोड़कर
निकल पड़ते है
सूखी नदी में बाट बना कर-
छोटे बच्चों के खिलौने
बनाये जा सकते थे
एक समय के बाद
उनको भी रख दिया जाता है
किसी चीज़ में लपेटकर-
इस ब्रह्माण्ड को भी
बनाया जा सकता था
किन्तु यह भी
दिन-प्रतिदिन कर रहा है
स्वयं का विस्तार-
चाँद को भी
बनाया जा सकता था
किन्तु यह भी बदलता रहता है
दिन-प्रतिदिन
मैं हमेशा से चाहता था
कोई भी ऐसी चीज़ बनानी
जो हमेशा नियत रहे
शुद्ध रहे
शाश्वत रहे
पवित्र रहे
फ़िर मुझको एक ख़्याल आया
मैंने कलम और पन्ने लेकर
प्रेम-कविता रची
तुमको केंद्र मानकर।