कविता की ताकत,
लिखने का अंदाज़ बदल क्यों जाता है,
कवि तो कवि है उसे और क्या भाता है,
जल रही धरती है तो आग बुझाएं कैसे,
क़लम के जोर से क्या नहीं बुझ जाता है,
संसद कितना भी किसी को गुमराह करे,
कवि अगर चाहे उसको भी सरेराह करे,
कविता स्वतंत्र है किसी का अधिकार नहीं,
जहां की बुराई से कवि ही आगाह करे,