कविता : क़ुर्बानी और क़ुर्बान
क़ुर्बानी हो देश पर, हो जाओ कुर्बान।
बनकर एक शहीद तुम, करो वतन का मान।।
ऋण मिट्टी का जो चुके, हँसके देना प्राण।
देश मान में है छिपा, हम सबका सम्मान।।
हटो नहीं पीछे कभी, सदा निभाओ फ़र्ज़।
तभी गूँजते जगत् में, बहादुरी के गान।।
कुर्बानी ज़ाया नहीं, जाती मेरे दोस्त!
जिससे मिलती हो अगर, औरों को मुस्क़ान।।
मुझे मुहब्बत में कभी, होना हो क़ुर्बान।
देना मालिक शक्ति तुम, समझूँ इसमें शान।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना