निकला हूँ अपने पथ पर/मंदीप(कविता)
निकला हूँ अपने पथ पर/मंदीप
निकला हूँ अपने पथ पर अब पा कर रहूँगा,
जब तक ना मिलेगी मंजिल तब तक चलता रहूँगा।।
तुफानो से लड़ने का अटल विस्वास मुझ में,
आँधियो का मुख मोड़ कर रहूँगा।।
ठान ली अब मैने लहरो पर चलना,
अब समुन्दर को भी माप कर रहूँगा।।
आ जाये बेसक ऐ आसमा रास्ते में मेरे,
मै आसमान को भी निचे झुका कर रहूँगा।।
पहाड़ भी बेसक आ जाये मेरे रास्ते में,
पहाड़ को भी मै गिरा कर रहूँगा।।
मानूगा ना हार जब तक सासे जिस्म में,
हर बार गिर कर मै फिर से उठुगा।।
टूटने ना देना होसला “मंदीप” अपने मन का,
बाधाओ को औकात अपनी बता कर ही रहूँगा।।
मंदीपसाई