कल
आजकल कल की दुनिया में
मन को मिले न कल
हर पल हर पल हर पल।
हो गये आजकल हम
कल के गुलाम
कल तक जो लेते थे
परिश्रम से काम।
अब चैन नहीं जीवन में
चल चल चल चल चल चल
हर पल हर पल हर पल।
चला गया वह कल
खुशियों से भरा था अंचल
माटी की सौंधि खुशबू
झरनो में स्वच्छ निर्मल
बहता पानी कल कल
आंगन में खटिया डालकर
सोने में कितना था कल
आकाश में तारे करते थे
झलमल झलमल झलमल
हर पल हर पल हर पल।
-विष्णु ‘पाँचोटिया’